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मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है - हेम चन्द्र कुकरेती

Tuesday, January 21, 2020

मुफ्त की अपेक्षा क्यों?

जीवन में मुफ्त कुछ नहीं मिलता, एक सांस लेने के लिए एक सांस देनी पड़ती है। कोई भी वस्तु जिसपर कुछ लागत लगती है, यदि मुफ्त मिल रही है तो उसकी कीमत कभी न कभी, किसी न किसी को, किसी न किसी भी रूप में चुकानी पड़ती है। इसलिए किसी भी सभ्य नागरिक को मुफ्त की अपेक्षाओं को छोड़कर केवल अपनी मेहनत के फल को आत्मसम्मान और अनंद सहित उपभोग करना चाहिए।

एक बार एक राज्य में अकाल पड़ा, लोगों के पास खाने को अन्न नहीं था। वहां का राजा अपनी प्रजा से सहानुभूति रखता था, उसके पास अन्न का काफी भंडार था जिसे वह प्रजा को देना चाहता था। राजा ने घोषणा की कि वो एक भवन बनाना चाहते हैं, जोभी उसमें श्रमदान देगा उसे परिश्रमिक के रूप में समुचित अन्न दिया जाएगा। कुछ लोग जो इसके लिए तैयार हुए उनको दिन के समय निर्माण में लगा दिया गया। कुछ लोग जो संख्या में कम थे लेकिन अपने पद-प्रतिष्ठा, शिक्षा या इस कार्य के ज्ञान न होने के कारण निर्माण कार्य करने में झिझक महसूस कर रहे थे, उनको रात के समय उसी भवन को तोड़ने में लगा दिया गया। इस प्रकार अकाल का समय भी हंसी-खुशी बीत गया।

किसी दरबारी ने पूछा कि वे अन्न को बिना श्रम के भी प्रजा को बांट सकते थे, फिर उन्होंने बेवजह जनता को क्यों परेशान किया। राजा ने बताया कि वे अपनी प्रजा को मुफ्त में कुछ नहीं देना चाहते, इससे उनका आत्मसम्मान भी गिरेगा, और साथ ही यदि जनता को एक बार मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई तो बाद में राज्य में कोई भी कार्य नहीं करेगा, जोकि लोगों को अकर्मण्य और विध्वनकारी बना सकता है, साथ ही किसी भी राज्य के विकास के लिए बहुत नुकसानदायक है।

पुराने समय के कई अशिक्षित लोग आज के समय के कई पढ़े-लिखे लोगों से अधिक व्यवहारिक, समझदार थे।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य भी आने वाले चुनाव को देखते हुए कई नेता अनेक सुविधाओं को मुफ्त बांटने की घोषणा करते हैं। अच्छा होता कि अपने अतिरिक्त बजट को मुफ्त बांटने के बजाय वे शिक्षा, निर्माण या नागरिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में खर्च करते और नागरिकों को बेहतर जीवन जीने के अवसर देते।