उत्तराखण्ड प्रदेश की स्थापना से लेकर वर्तमान स्थिति तक का अध्ययन करने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि, “उत्तराखण्ड की स्थानीय जनता की मूलभूत समस्याएँ, उनके समाधान और निराकरण केवल स्थानीय संगठित राजनीतिक दल ही कर सकता है।”
इतने वर्षों में यहाँ भू-क़ानून, मूल निवास, रोज़गार, पलायन, वन्य जीवों का आतंक, गाँव में भूकंप-रोधी मकानों की आवश्यकता, भू-माफिया, खनन-माफिया, प्राकृतिक आपदाएँ, सरकारी संस्थानों में घोटाले, अकर्मण्यता व भ्रष्टाचार आदि अनेक समस्याओं के निराकरण होने के बजाय वृद्धि ही हुई है।
सभी बड़े दलों ने शहरी व बाहरी लोगों के हितों की ख़ातिर स्थानीय लोगों के हितों की ही बलि दी है, क्योंकि उनका उद्देश्य सत्ता पाना अधिक और स्थानीय समस्याओं का समाधान कम ही रहा है। इसी कारण यहाँ छल-प्रपंचों की राजनीति हमेशा स्थानीय मुद्दों पर हावी रही है।
समय आ गया है कि, प्रदेश हित में, सभी स्थानीय दल निजी स्वार्थों, मतभेद व हठधर्मिता से ऊपर उठकर सक्षम नेतृत्व, दूरदृष्टि तथा स्थानीय प्रतिभावान युवाओं को साथ लेकर एकजुट हों, तथा भविष्य के लिए ठोस योजना बनाकर जनता के समक्ष एक मज़बूत राजनीतिक विकल्प बनकर प्रस्तुत हों।