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मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है - हेम चन्द्र कुकरेती
Sunday, August 14, 2016
Sunday, July 17, 2016
शिष्टाचार और सभ्यता
किसी व्यक्ति के शिष्टाचार और सभ्यता उसके व्यवहार में प्रदर्शित होती है। पाया गया है कि भारतीयों में शिष्टाचार और सभ्यता कम पाई जाती है। जहां यह अनेक विकसित देशों में इसे प्रत्येक नागरिक को आरंभिक शिक्षा में ही सिखाया जाता है, भारत में इसे शिक्षा का भाग नहीं माना जाता। इसका परिणाम भटके हुए युवाओं, तथा बढ़ते अपराध के रूप में आए दिन दिखाई देता है।
कुछ सामान्य शिष्टाचार -
1- फोन करने पर उत्तर देने वाले का नाम पूछने से पहले अपना परिचय देना चाहिए।
2- यदि किसी परिचित की कॉल छूट जाए तो यथाशीघ्र उसे कॉल करें।
3- फोन करने से पहले नंबर ठीक से जांच लें, ऐसा न करने पर आप किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त व्यक्ति को परेशानी में डाल सकते हैं।
4- वाहन चलाते समय या किसी समूह के बीच बैठकर फोन न करें।
5- किसी भी स्थान से जाने से पहले आवश्यकतानुसार पंखे और लाइट के स्विच बंद कर लें।
6- वाहन चलाते या पार्किंग करते समय दूसरों की सुविधा का ध्यान भी रखें।
7- लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करें।
8- सार्वजानिक स्थानों पर जोर से न बोलें।
9- घरों में ऐसा ध्वनि या वायु प्रदूषण न करें जिससे पडोसी को परेशानी हो।
10- किसी से कोई वस्तु लेने या उठाने पर, इस्तेमाल के बाद यथाशीघ्र वैसे ही दें या रखें जैसे ली गई थी।
11- जिस देश, प्रदेश या स्थान में रहते हैं उसकी भाषा, संस्कृति व निवासियों का सम्मान करें, और उनको अपनाने का प्रयास करें।
12- विद्या से विनम्रता आती है अतः विनम्रता, अभिवादन, सेवा व सत्कार करना सीखें, इनके बिना शिक्षा अधूरी है।
13- सोशल मीडिया में कुछ भी लिखने से पहले भाषा और भावनाओं का ध्यान रखें। इससे न केवल आपकी छवि प्रभावित होती है, बल्कि एक अप्रिय बात से आप अपने अच्छे मित्रों को खो सकते हैं।
14- सोशल मीडिया में जाति, धर्म, लिंगभेद और राजनैतिक टिप्पणी से बचें, ये सभी अनावश्यक बहस और दुर्भावना को ही जन्म देते हैं।
Saturday, April 30, 2016
कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
Please click to see the e-book, paperback.
ई पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
English version
E-Book- To BE or not to BE
Book- To BE or not to BE
ई पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
English version
E-Book- To BE or not to BE
Book- To BE or not to BE
श्रमिक दिवस पर
क्या आप जानते हैं कि:
1. आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जहां आज भी कर्मचारियों/श्रमिकों तथा अधिकरियों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार, भोजनालय, निवास और यहाँ तक कि घरों के आकार और सुविधाएं भी पद के अनुसार होती हैं।
2. श्रमिक अपने कैरियर में आगे न बढ़ पाएं इसलिए ऐसी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नीतियां बनाई गई हैं कि चाहे वे कितना ही कठिन परिश्रम करें, शैक्षिक योग्यता बढ़ा लें या उत्कृष्ट प्रदर्शन कर लें, कभी उनके आरंभिक पद तक भी नहीं पहुँच सकते।
3. संस्थान द्वारा अधिकारियों के वेतन का 7% उनके पेंशन खाते में जमा किया जाता है जबकि, श्रमिक को 5% के लिए भी लड़ना पड़ता है। जबकि दोनों के वेतन में पहले ही बड़ा अंतर कर दिया जाता है और देखा जाय तो सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता श्रमिक को ही अधिक होती है।
4. अधिकारियों के पाल्यों को उच्च शिक्षा के होस्टल खर्च हेतु 2000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं, जबकि श्रमिक के पाल्य को 750 रूपए भी लड़ने के बाद मिलते हैं। अर्थात शिक्षा के अधिकार होने के बाद भी दोनों के बच्चों की शिक्षा में भेदभाव।
5. अधिकारियों का पदोन्नति काल भी 2 से 4 वर्ष है जिसके लिए कोई परीक्षा या साक्षात्कार नहीं होता, जबकि कर्मचारी का पदोन्नति काल 5 वर्ष से कम नहीं है, जिसे वास्तव में पदोन्नति कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे उसके पद, स्तर या कार्य में कोई अंतर नहीं आता। इसके लिए भी उसे परीक्षा तथा साक्षात्कार देना होता है।
6. श्रमिकों को जापानी पद्वतियां जैसे कैजन, 6सिग्मा, क्वालिटी सर्किल आदि अपनाने के लिए जोर डाला जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जापानी प्रबंधन पद्वति अपनाने के बजाय अंग्रेजों की तरह दमनकारी नीतियां अपनाते हैं।
7. बिक्री कम होने पर श्रमिक को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि तो शून्य कर दी जाती है लेकिन अधिकारी को प्रोत्साहन राशि तब भी मिलती है।
इसके अलावा और भी कई प्रकार से श्रमिकों का शोषण किया जाता है वो भी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि निजी संस्थानों में श्रमिकों का कितना शोषण होता होगा।
1. आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जहां आज भी कर्मचारियों/श्रमिकों तथा अधिकरियों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार, भोजनालय, निवास और यहाँ तक कि घरों के आकार और सुविधाएं भी पद के अनुसार होती हैं।
2. श्रमिक अपने कैरियर में आगे न बढ़ पाएं इसलिए ऐसी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नीतियां बनाई गई हैं कि चाहे वे कितना ही कठिन परिश्रम करें, शैक्षिक योग्यता बढ़ा लें या उत्कृष्ट प्रदर्शन कर लें, कभी उनके आरंभिक पद तक भी नहीं पहुँच सकते।
3. संस्थान द्वारा अधिकारियों के वेतन का 7% उनके पेंशन खाते में जमा किया जाता है जबकि, श्रमिक को 5% के लिए भी लड़ना पड़ता है। जबकि दोनों के वेतन में पहले ही बड़ा अंतर कर दिया जाता है और देखा जाय तो सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता श्रमिक को ही अधिक होती है।
4. अधिकारियों के पाल्यों को उच्च शिक्षा के होस्टल खर्च हेतु 2000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं, जबकि श्रमिक के पाल्य को 750 रूपए भी लड़ने के बाद मिलते हैं। अर्थात शिक्षा के अधिकार होने के बाद भी दोनों के बच्चों की शिक्षा में भेदभाव।
5. अधिकारियों का पदोन्नति काल भी 2 से 4 वर्ष है जिसके लिए कोई परीक्षा या साक्षात्कार नहीं होता, जबकि कर्मचारी का पदोन्नति काल 5 वर्ष से कम नहीं है, जिसे वास्तव में पदोन्नति कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे उसके पद, स्तर या कार्य में कोई अंतर नहीं आता। इसके लिए भी उसे परीक्षा तथा साक्षात्कार देना होता है।
6. श्रमिकों को जापानी पद्वतियां जैसे कैजन, 6सिग्मा, क्वालिटी सर्किल आदि अपनाने के लिए जोर डाला जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जापानी प्रबंधन पद्वति अपनाने के बजाय अंग्रेजों की तरह दमनकारी नीतियां अपनाते हैं।
7. बिक्री कम होने पर श्रमिक को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि तो शून्य कर दी जाती है लेकिन अधिकारी को प्रोत्साहन राशि तब भी मिलती है।
इसके अलावा और भी कई प्रकार से श्रमिकों का शोषण किया जाता है वो भी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि निजी संस्थानों में श्रमिकों का कितना शोषण होता होगा।
Wednesday, March 30, 2016
Saturday, March 5, 2016
संरक्षा सप्ताह
1. जीवन अमूल्य है, इसलिए जीवन संबंधी किसी भी वस्तु से समझौता न करें।
2. खरीदने के लिए वाहन का चयन करते समय दिखावे के बजाय उसमें लगे सुरक्षा उपकरणो व साधनों को वरीयता दें।
3. आपके दुपहिया तथा चौपहिया वाहनों में पीछे देखने वाले दर्पण (रियर व्यू मिरर) आपकी सुरक्षा व सुविधा के लिए लगाए गए हैं, इसलिए उनको खुला रखें व समय पड़ने पर इस्तेमाल करें, न कि उनकी सुरक्षा के लिए उनको अंदर मोड के रखें। इनका मूल्य जीवन से अधिक नहीं है।
4. अपने व परिजनों की सुरक्षा के लिए, सुरक्षा साधनों (जैसे हेलमेट, सुरक्षित जूते आदि) के प्रयोग में ढिलाई न करें तथा वाहन सवारियों से या सामान से ओवरलोड न करें।
5. अपने बच्चों को सड़क सुरक्षा के बारे में समझाएँ तथा सुरक्षा में चूक से होने वाली दुर्घटनाओं व नुकसान के बारे में बताएं।
6. वयस्क होने के बाद, उपयुक्त प्रशिक्षण देकर तथा निर्धारित वाहन चालक लाइसेन्स बनवाने के बाद ही बच्चों को वाहन चलाने दें।
7. याद रखें सड़क दुर्घटनाओं में सर्वाधिक लोग अपना जीवन/अंग खो देते हैं, इसलिए सड़क पर पूरी तरह सतर्क रहें, बाएँ चलें, सुरक्षित व संतुलित मनस्थिति से तथा ध्यान से चलें/वाहन चलाएं।
8. विशेषकर वाहन चलाते समय अपने क्रोध व भावनाओं पर नियंत्रण रखें, स्वयं पर नियंत्रण रखने वाला ही वाहन पर उचित नियंत्रण रख सकता है।
9. सड़क पर अनावश्यक हॉर्न से ध्वनि प्रदूषण कर दूसरों का ध्यान न बिगाड़ें। स्वयं भी धैर्य रखें व दूसरों के धैर्य की परीक्षा भी न लें।
10. जिग-जैग ड्राइविंग व बाईं ओर से ओवरटेक न करें, जल्दबाज़ी करने से अनेक लोग स्वयं के साथ ही दूसरों के लिए भी मुसीबत खड़ी कर देते हैं।
11. अपने वाहन यथास्थान व ठीक से पार्किंग करें, पार्किंग सुविधा न होने पर सड़क से दूर या एकदम किनारे पर वाहन खड़ा करें।
12. पार्किंग करते समय ध्यान रखें कि उससे, आने-जाने वालों को या अन्य पार्किंग करने वालों को वाहन खड़ा करने या निकालने में असुविधा न हो।
13. सड़कों को कूड़ादान या रेत, बजरी आदि का भंडार स्थान बनाने से असुरक्षित वातावरण पैदा होता है, अतः ऐसा न करें और न ही किसी को करने दें।
14. सड़क में कभी भी दुर्घटना हो सकती है इसलिए आपातकाल की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी मार्गों को खुला रखें तथा किसी भी प्रकार से अवरोधक स्थिति उत्पन्न न करें।
15. वाहनों पर गैर मानक के हॉर्न, बल्ब आदि न लगाएँ, ये भी दुर्घटनाओं का कारण हो सकते हैं। अपने वाहनों की नियमित सर्विस/जांच आवश्य कराएं।
16. अपने वाहन के सभी आवश्यक अद्यतन किए कागजात (लाइसेन्स, बीमा, पंजीयन प्रमाण पत्र आदि) सदैव वाहन के साथ रखें तथा आपातकाल में क्या करना चाहिए, उसकी जानकारी रखें।
17. ट्रैक्टर जैसे वाहन केवल कृषि उपयोग के लिए बनाए गए हैं, इनके परिवहन या भवन निर्माण सामग्री ढुलाई आदि व्यावसायिक कार्यों में दुरपयोग को रोकने का प्रयास करें, ताकि इनसे मुख्य मार्गों में होने वाली दुर्घटनाओं व असुविधाओं से बचा जा सके।
18. गैर मानक के वाहन जैसे ‘जुगाड़’आदि साधनों से बचें व इनके मुख्य मार्गों में प्रयोग को रोकने का प्रयास करें।
सावधान रहें, सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, हर दुर्घटना से पूरे देश का नुकसान होता है।
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