किसी की भी असमय मृत्यु दुखद होती है, चाहे वो सम्पन्न फिल्मी हस्तियां हों या झोलाधारी साधू।
किसी को बचाने के लिए लोग जीजान लगा देते हैं और किसी को लोग जान से मार देते हैं।
जानबूझकर किसी निर्दोष की हत्या करना शायद ज्यादा कष्टदायक है।
जान सबकी बराबर है, फिर भी मीडिया और सोशल मीडिया साधुओं के लिए कम संवेदनशील दिखाई देता है।
किसी को बचाने के लिए लोग जीजान लगा देते हैं और किसी को लोग जान से मार देते हैं।
जानबूझकर किसी निर्दोष की हत्या करना शायद ज्यादा कष्टदायक है।
जान सबकी बराबर है, फिर भी मीडिया और सोशल मीडिया साधुओं के लिए कम संवेदनशील दिखाई देता है।
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