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मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है - हेम चन्द्र कुकरेती

Thursday, September 1, 2011

अच्छी बात- बुरी बात

एक सहयोगी ने ५ घंटे मेहनत करके अन्ना पर एक सुन्दर कविता लिखी।
उसने ये काम तब किया जब वो ड्यूटी पर था और जो सामग्री इस्तेमाल कि वो भी सरकारी ही थी।

तीन अवयस्क बच्चे अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहे थे.
ये तीनो, एक बाइक, बड़ी स्पीड से, बिना हेलमेट के चला रहे थे और साथ ही करतब भी दिखा रहे थे।

एक संगठन के नेता भ्रष्ट राजनीती के विरोध में जलूस के लिए तैयार हुए।
लेकिन विरोधी संगठन के साथ राजनैतिक मतभेद का शिकार होकर वहीँ रह गए।

एक पडोसी की, अन्ना टोपी के साथ अख़बार में फोटो आई थी।
लिकिन फोटो खींचता देख वो टोपी उन्होंने एक अजनबी के सर से चुराई थी।

एक बड़े मंत्री भ्रस्टाचार को देश से हटाना चाहते हैं।
अपने पूर्व ईमानदार मंत्री को इन्होने ही हटवाया, ये सब जानते हैं।

एक अधिकारी अन्ना के विचारों की तारीफ के पुल बांध रहे हैं।
लेकिन बोलने में वो खुद दिग्विजय सिंह से भी बुरे हैं।

ऊपर लिखी पंक्तियों में यदि दूसरी लाइन भी पहली से मिलती-जुलती होती।
तो ये रचना यकीनन ज्यादा सुन्दर होती।

Friday, August 19, 2011

कल और आज

आज और कल- आज कि स्थिति को देखते हुए कहना होगा कि सरकार धन्यवाद की पात्र है क्योंकि उसके कारण ही देशवासी, भ्रस्टाचार को नफरत की दृष्टी से देखने लगे और इसके विरोध में एकजुट तो हुए. ऋणात्मकता जितनी अधिक होगी उसके विपरीत धनात्मकता भी उतनी ही अधिक होगी. वरना, अभी तक तो ऐसी स्थिति थी की रिश्ते की बात होने पर लड़की वाले लड़के वालों से पूछते थे कि ऊपर की कमाई भी है की नहीं.

Sunday, August 14, 2011

स्वतंत्रता दिवस कि शुभकामनायें

हमें आज़ादी चाहिए - भ्रस्टाचार, आतंकवाद, काले धन, बेईमानी, सस्ती व स्वार्थी राजनीती, बढती आबादी, बेरोज़गारी, गरीबी, मंहगाई, पद व सत्ता के दुरपयोग, मिलावटखोरी, प्रदूषण आदि से।
और इन सब के लिए कोई बाहर से नहीं आयेगा, प्रत्येक भारत वासी को अपने स्तर पर इसके लिए मिलकर प्रयास करना होगा। तभी हम आने वाली पीढ़ियों को अपने सपनों का भारत दे पाएंगे।
जय हिंद। जय भारत।

Thursday, April 7, 2011

आजकल

२१ मई, आतंकवाद विरोध दिवस-
कट्टरवाद जब व्यक्ति तक सीमित रहता है तो ब्यक्ति को नुकसान पंहुचाता है, लेकिन जब व्यक्ति से समूह तक फ़ैल जाता है तो पूरे समाज को नुकसान पंहुचाता है और आतंकवाद को जन्म देता है। इस प्रकार से पनपने वाले आतंकवाद के कई और रूप भी देखे जा सकते हैं. उदहारण के लिए कट्टरवाद जब किसी संस्थान के अन्दर होता है तो संस्थान की कार्य क्षमता को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पंहुचा सकता है. लेकिन कई बार इसे अनुशाशन का नाम भी दे दिया जाता है.

पसीने की कीमतों में फर्क-
देश के खिलाडी और अभिनेता पसीना बहाते हैं, करोड़ों रूपये कमाते हैं और फिर बड़ी-बड़ी गाडिओं में घूमते हैं। लेकिन जिन सड़कों पर उनकी आरामदायक बेशकीमती कारें चलती हैं वो भी किसी मजदूर की कड़ी मेहनत के पसीने से सिंची होती हैं, जिनको बदले में मिलती हैं केवल दो वक़्त की रोटी। आखिर पसीने की कीमतों में इतना फर्क क्यों?


नेता और राजनीतिज्ञ-
आज देश में नेतृत्व की कमी और राजनीती की अधिकता है जोकि देश के चहुमुखी विकास में सबसे बड़ी बाधक है। जहाँ नेता, देश व समाज के हितों को ध्यान में रखकर अच्छाइयों के रस्ते पर ले जाता है, राजनीतिज्ञ स्वयं के हितों को ध्यान में रखकर गलत को सही और सही को गलत साबित करने की कोशिश में लगा रहता है। राजनीती केवल संसद या विधान सभाओं में ही नहीं है बल्कि पंचायतों, सरकारी कार्यालयों, संस्थानों व सार्वजनिक प्रतिष्ठानों आदि में भी है। इस राजनीती का कारण केवल भौतिक लाभ हो ऐसा नहीं लगता बल्कि कई जगह व्यक्ति विशेष के अहम्, सत्ता की भूख, दूसरों को हीनता का अहसास कराना जैसे अभौतिक कारण भी दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है जैसे अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेजियत छोड़ गए। अब सवाल ये उठता है की इन काले अंग्रेजों से हमें कौन बचाएगा? क्या हर संस्थान में अन्ना हजारे जैसे लोगों की आवश्यकता है?

कौन तय करेगा-

देश में परमाणु सयंत्र कहाँ और कैसे लगना चाहिए क्या ये मछुआरे और राजनीतिक दलों को तय करना चाहिए या फिर सम्बंधित विषयों के विशेषज्ञों को?

भारत में सबसे सस्ता भोजन-
चाय-१.००, सूप-५.५०, दाल-१.५०, थाली-२.००, चपाती-१.००, चिकन-२४.५०, डोसा-४.००, बिरयानी-८.००, मछली-१३.००
ये सब उन गरीबों के लिए उपलब्ध है जिनका वेतन ८०,००० रुपये प्रतिमाह (बिना इनकम टैक्स तथा अन्य सुविधाएँ अतिरिक्त) है। वे गरीब जनता के प्रतिनिधि हैं और पार्लियामेंट में अक्सर सोते, लड़ते या एक दूसरे पर कीचड़ उछालते पाए जाते हैं या फिर संसद का बहिष्कार कर बाहर देश को गुमराह कर रहे होते हैं।
ये दाम उनकी कैंटीन के हैं।

आप
सच्चे भारतीय हैं यदि आप-
  • देश हित को धर्म, जाति तथा व्यग्तिगत स्वार्थों से ऊपर रखते हैं।
  • देश को भ्रस्टाचार से मुक्त करना चाहते हैं।
  • प्रत्येक भारतीय को सामान दृष्टि से देखते हैं चाहे वो किसी भी धर्म, जाति, लिंग, पद या आय समूह का हो।
  • किसी कमजोर पर अत्याचार सहन न कर सकते हों।
  • आत्मसम्मान के साथ जीना चाहते हैं।
  • अन्याय के विरोध में आवाज उठाना चाहते हैं।
  • अपना काम ईमानदारी से करते हैं।

नव संवत्सर की पहली उपलब्धि
भ्रस्टाचार पर जनता की विजयआशा है अन्ना की अंधी भ्रस्टाचार की गहरी जड़ें भी उखाड़ फेंकेगी जिसमे संसद, विधान सभाएं, सरकारी कार्यालय, सरकारी, निजी सार्वजनिक संस्थान भी शामिल होंगे केवल भ्रस्टाचार बल्कि गरीब, कमजोर मजदूर के ऊपर अमीर, ताकतवर अधिकारी का अन्याय भी समाप्त होगाजय भारत

भ्रस्टाचार
भ्रस्टाचार ने फोन और खेलों को भी नहीं छोड़ा,
मिलावटखोरों ने कुट्टू के आटे को भी नहीं छोड़ा।
आतंकियों ने धरती के स्वर्ग को बनाया नर्क,
पडोसी दुश्मनों ने नकली नोटों से किया बेडा गर्क।
लूट खसोट का सरेआम चल रहा ब्यापार,
आबादी ने किया १२१ करोड़ का आंकड़ा पार।
अन्ना हजारे शायद इनसे मुक्ति दिला पाएंगे,
अगर हम सभी हजारों अन्ना बनकर उनका साथ निभाएंगे।

Monday, February 21, 2011

अभिव्यक्ति


कई रेखाएं मनोभावों के अनुरूप लयबद्ध होकर मन की अभिव्यक्तियों का आकार ले लेती हैं।

Monday, January 17, 2011

मंथन

विचार मंथन का निष्कर्ष ही उसकी गहराई का आंकलन करा देता है
  • जब तक हम अच्छाइयों का सम्मान नहीं करेंगे, बुराइयों के बीच पिसते रहेंगे।
  • जिस दिन बेईमान जेल में और ईमानदार संसद में होंगे उसी दिन देश को महान कहा जा सकता है।
  • दिखाई देने वाले जीवों को दुखी करना और अदृश्य इश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करना कहीं भी तर्क संगत नहीं लगता।
  • जो लोग अपनी ढाई इंच की जुबान पर काबू नहीं कर सकते, 5-6 फीट लम्बे आदमियों के समूह को काबू कर पाएंगे ऐसा नहीं लगता।
  • अपनी परेशानियों के बजाय दूसरों की खुशियों से परेशान होना इर्ष्या की चरम सीमा को दर्शाता है।

Monday, January 3, 2011

भावनाएं!

भावनाएं जब लेखनी के माध्यम से कागज पर उतर जाती हैं तो कभी-कभी कविताओं का रूप ले लेती हैं-

लोकतंत्र
मैंने देखा है उसे,
अधिकारिओं द्वारा शोषित होते हुए,
हर शिकायत पर प्रताड़ित होते हुए।
फिर भी वह खुद को
काम में व्यस्त रखता रहा।

मैंने देखा है उसे,
पुलिस से बर्बरता पूर्वक पिटते हुए
बदन पर जख्म आँखों से खून बहते हुए।
फिर भी वह हर जुर्म को सहता रहा
नियति समझकर।

मैंने देखा है,
सियासी झंडों को उसकी छाती में गढ़ते हुए,
कभी उसके कफ़न को झंडे की शक्ल लेते हुए।
मगर वह खामोश रहा
क्योंकि उसे बेजान कर दिया गया था।

ये सब देखकर
मै चुप रह सका, पूछ बैठा
कौन हो तुम और क्यों इतने शशक्त होते हुए भी
मजबूर हो खुद को मिटने के लिए?
बोला, मै लोकतंत्र हूँ लेकिन राजनीति के हातों मै भी मजबूर हूँ।
(प्रकाशित-सत्य चक्र, १३ से १९ जून २०११)

हाले
दिल
तुम्हे ये गिला था,
कि हमने कुछ न कहा।
हमें ये गिला था,
की तुमने कुछ न सुना।
हमने जुबां से कहना चाहा,
जो कह न पाए।
नज़रों से कहना चाहा,
तो तुम समझ न पाए।
हम तो पा चुके,
हाले दिल न कह पाने की सजा।
अब तुम ही कुछ कहो,
जुबां से या नजर से।
हम समझ लेंगे सनम,
हाले दिल बयां करो तो सही।
(प्रकाशित-वनिता, जनवरी २००९)


इंतजार
मैंने जब भी बनानी चाही तस्वीर,
बिखर गए रंग
और रह गया खाली मेरा कैनवास

चाहा की छेडू कोई धुन,
तो टूट गए तार
और हो गए मेरे-
सारे साज़ बेआवाज़

फिर मैंने सोचा, लिखूं एक कविता
पर शब्दों ने छोड़ दिया मेरा साथ,
और रह गया,
कोरा कागज़ मेरे पास

देखना चाहा जब सपना,
तो पथराई आँखें
दे गई आँखों में
चाँद और टूटे ख्वाब

फिर भी है मुझे इंतजार,
वो सुबह भी आयेगी
जो मिलाएगी रात को दिन के साथ,
पूरे होंगे अरमां, है पूरा विश्वास
(प्रकाशित-कादम्बिनी, अगस्त २००६)


आसमां
हर किसी की दुनिया में
सिर्फ ये जमीं और ये आसमां नहीं होते।
इस आसमां से ऊपर भी
कई आसमां होते हैं।
ख़ामोशी
हर ख़ामोशी
बेआवाज नहीं होती।
ख़ामोशी की आवाज सुन सके
हर किसी पे वो अहसास नहीं होते।
खुदा
खुदा भी होते हैं सबके जुदा
मेरा तो खुदा तू है।
मुझे इससे क्या
गर तेरा खुदा कोई और है।
(प्रकाशित
-कादम्बिनी, मई २००५)




Sunday, January 2, 2011

जरा सोचिए !

समय दिन, महीने, वर्ष और फिर दशक के वेश बदलकर पदचाप किए बगैर गुजरता रहता है। गुजरे हुए पलों के कई सवाल हमारे वर्तमान को झकझोर कर भविष्य के लिए प्रश्नचिंह बनकर व्यथित कर देते हैं। सवाल बहुत मामूली से लेकिन बहुत ही अहम् जिनके जवाब तथाकथित किताबों से घिरे शिक्षाविदों और जनसमूहों को अपने शब्दजाल से भ्रमित करने वाले सफेदपोश लोगों के पास भी नहीं हैं। इन सवालों से आरम्भ होता है अंतहीन चिंतन। जरा सोचिये -

  • गरीब को एक रुपए की भीख नहीं मिलती लेकिन अमीर मंत्रियों के गले में हजार के नोटों की मालाएँ पहनाई जाती हैं।
  • रिक्शे वाले से पांच रुपए के लिए मोलभाव होता है लेकिन बड़े होटलों में पचास रूपए भी आराम से बख्शीश में दे दिए जाते हैं।
  • लगभग २८० लाख करोड़ रूपए स्विस बैंक में जमा कर भारत की गिनती दुनिया के शीर्षस्थ कला धन कमाने वाले देशों में है। इसे क्या कहेंगे, अमीरों का गरीब देश या भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा?
  • कहीं एक पेड़ काटने के नाम पर ही वनकर्मी से लेकर पर्यावरण मंत्री तक आगबबूला हो जाते हैं और कहीं हजारों पेड़ों की चोरी या उनमे लगी आग भी इनके आँखों को नहीं खोल पाती।
  • कागजों में लिखा गया है की इस देश में हर जाति, धर्मं व लिंग के लिए सामान अधिकार हैं लेकिन शिक्षा, नौकरी, पदोन्नति, ग्रह आबंटन और यहाँ तक की राष्ट्रपति के चुनाव भी इसी आधार पर होते हैं।
  • एक छोटे से संस्थान को चलने के लिए आयु, शैक्षिक योग्यता, शारीरिक योग्यता, आयु और यहाँ तक की पुलिस छानबीन भी की जाती है लेकिन विशाल देश चलाने वाले नेताओं के लिए इनकी आवश्यकता नहीं होती।
  • वोट देते समय लोग बेईमान नेताओं की अच्छाइयां गिनाते हैं और बाद में उनसे ईमानदार प्रशासन की उम्मीद करते हैं.
  • ईमानदार मंत्री के खिलाफ नेतृत्व परिवर्तन की आवाजें उठाई जाती हैं लेकिन भ्रष्ट मंत्री के आते ही सबकी बोलती बंद हो जाती है जिसमे विरोधी तथा मीडिया भी शामिल हैं।
  • एक भ्रष्ट नेता को बचाने के लिए कई कर्तव्यनिष्ठ जवानों की जानें चली जाती हैं।
  • हमारे नेता कई दिनों तक अपने कार्य का बहिष्कार करते रहते हैं या अनुपस्थित रहते हैं जहाँ एक-एक मिनट कीमती होता है। इसका उनके वेतन पर कोई असर नहीं होता, जबकि एक मजदूर का वेतन उसके विलम्ब के मिनटों के हिसाब से काट लिया जाता है।
  • समय पर कर जमा न करने पर नागरिक को दण्डित किया जाता है लेकिन उसे समय पर वेतन न मिलने पर किसी को कोई दंड का प्रावधान नहीं है।
  • ईमानदार कर व शुल्क दाता यदि कोई गलती करता है तो उसे दफ्तरों और वकीलों के चक्कर लगाने पड़ते हैं लेकिन इनकी चोरी करने वालों के घर विभागीय लोग मिठाई लेकर जाते हैं।
  • ये जानते हुए भी की देश गरीब है लोग लाखों रुपयों के रेल, बस व अन्य सार्वजानिक सम्पति को सरेआम नुकसान पंहुचाते हैं।
  • एक मजदूर के विलम्ब से आने पर पगार काट ली जाती है लेकिन उसको समय पर पगार न मिलने पर किसी को कोई नुकसान नहीं होता।
  • मेहनती कर्मचारी को ईनाम में मिलते हैं ; अधिक काम, अधिकारी से भाषण और छुट्टी की नामंजूरी जबकि हरामखोरी करने वाले को मिलता है इसका उल्टा यानि आराम ही आराम।
  • सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में अछे कर्मचारी को प्रमोसन के बजाय जिल्लत झेलनी पड़ती है फिर भी अधिकारी अपने प्रमोसन के लिए उनसे अछे परिणामों की आशा करते हैं।
  • अधिकारी लोग कार्यालय में काम तो मेहनती व ईमानदार कर्मचारियों से करवाते हैं लेकिन पदोन्नति की सिफारिश उनकी करते हैं जो उनके घरेलू काम करते हैं।
  • कोई गलती से किसी जानवर को मार दे तो उसे जेल की हवा खानी पद सकती है पर मिलावटखोर हर दिन हजारों इंसानों को जहर बेचकर पैसा भी कमाते हैं और खुली हवा में भी घूमते हैं।
  • सरकारी इंजीनियर इंजीनियरिंग के काम के बजाय केवल कागजों में हस्ताक्षर करते हैं और पैसों से खेलते हैं जबकि डाक्टरों को स्वयं ही आप्रेसन करना पड़ता है और गलती होने पर आर्थिक दंड व लोगों का गुस्सा भी झेलना पड़ता है। क्या इंजीनियरिंग में ४ वर्ष तक केवल हस्ताक्षर करना सिखाते हैं।
  • सीधेसादे पर कोई भी अकारण उंगली उठा देता है लेकिन अपराधी और बदमाश के आगे लोग सर झुकाए खड़े रहते हैं।
  • गुणवान की अनदेखी और गुणहीन की भीड़ में जयजयकार होती है।
  • जहाँ ईमानदार व्यक्ति गलियों में डर व गुमनामी की जिंदगी जीता है दूसरी ओर बदमाश, भ्रष्ट व आतंकवादी हर रोज मीडिया में छाया रहता है।
  • जायज काम करवाने में जूते घिस जाते हैं और नाजायज काम फोन करके ही हो जाते हैं।
  • सच बोलने पर लोग गुस्से से पागल हो जाते हैं और झूट बोलने पर ख़ुशी से पगला जाते हैं।
  • सत्यता को प्रमाणित करना पड़ता है और झूट को बोलकर ही मान लिया जाता है।
  • एक मामूली चेन खींचने वाले चोर की पीटपीटकर जान ले ली जाती है लेकिन सार्वजानिक सम्पति के बड़े चोरों पर लोग जान छिड़कते हैं। यही नहीं ऐसी नौकरी पाने के लिए लोग किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं।
  • ईमानदार विद्युत् उपभोक्ता का कनेक्शन कट जाता है लेकिन बिजली के बड़े चोरों को विभागीय लोग स्वयं चोरी के गुर सिखा जाते हैं साथ ही छापा मारने से पहले उनको सतर्क भी कर देते हैं।
  • ईमानदार बिल जमाकर्ता को घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है और बिजली चोरी करने वाले उद्योगपतियों के घर विभागीय लोग अक्सर चाय पानी के लिए स्वयं ही जाते रहते हैं।
  • गाँव व कस्बों में पहले अच्छी सड़कों की मांग की जाती है और बाद में जगह जगह उलटे सीधे स्पीड ब्रेकर बना कर उसकी हालत पहले से भी बदतर बना दी जाती है।
  • भगवान को किसी ने नहीं देखा फिर भी उसे लोग प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने आसपास जीवित प्राणियों को दुःख देते हैं फिर भी कहते हैं की कण कण में भगवान हैं।
  • अधिकतर अधार्मिक कार्य धर्म के नाम पर किए जाते हैं जिनमे आतंकवाद भी शामिल है।
  • धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर कुछ भी करने की इजाजत है जैसे आबादी बढ़ाना, किसी की जान लेना, फतवा जारी करना, सड़कों पर प्रार्थना या जलूस निकालकर व्यवस्था बिगाड़ना आदि।
  • सड़कों पर वाहन चालक जल्दी के चक्कर में कतार से दायें बाएं से अपने वाहन निकलने की कोशिश करते हैं जिससे पूरा ट्रैफिक ही अवरुद्ध हो जाता है।
  • बत्तीस लाख सत्तासी हजार दो सौ तिरेसठ वर्ग किलोमीटर का देश जिसमे २८ प्रदेश, ६ केंद्र शासित प्रदेश तथा ६०८ जिले व लाखों महानगर, नगर, कसबे व गाँव हैं लेकिन एक छोटा सा नगर भी ऐसा नहीं जो नियम-कानून, अनुशाशन-प्रशाशन, पर्यावरण-प्रदूषण, साफ़-सफाई व सार्वजनिक सुविधाओं की दृष्टि से रहने लायक हो।
  • देश के ३५५ विश्वविद्यालय व लाखों विद्यालय पांच वर्ष में देश को ३५५ शिक्षित व कर्त्तव्यनिष्ट सांसद देने में असमर्थ हैं।
  • देश के शिक्षित नेता भी देश की समस्याओं को कितना समझ पाते हैं और अनावश्यक विषयों में क्यों उलझे रहते हैं।
  • हमारी चुनाव प्रणाली ऐसी क्यों है जिसमे केवल ४०-५० प्रतिशत लोग, जिनमे अधिकतर अशिक्षित व निम्नवर्गीय होते हैं, मतदान में भाग लेकर सरकार बनाते हैं और बाद में वही सरकार इन मतदातों को भुलाकर उच्च वर्गीय लोगों के इशारों पर नाचने लगती हैं। इसके आलावा चुनाव में काला धन बहाया जाता है, भ्रष्ट लोग चुनाव लड़ते हैं और फिर नेताओं की खरीद फरोख्त की जाती है।
  • प्रति वर्ष हजारों छोटी के प्रबंध संस्थानों से लाखों अनेक विधाओं के पारंगत प्रबंधक निकलते हैं लाखों में वेतन लेते हैं लेकिन देश के एक भी सरकारी या सार्वजनिक संस्थान की नीतियों को सुधरने में असमर्थ हैं.
  • देश के हजारों मानव संसाधन विकास के विशेषज्ञ तथा मंत्रालय मिलकर भी देश के किसी भी सरकारी या सार्वजनिक संस्थान के लिए ऐसी मानव संसाधन की नीतियाँ नहीं बना पाए जिससे कर्मचारी की योग्यता का समुचित उपयोग हो तथा कर्मचारी भी संतुष्ट हो।
  • कालेजों में जटिलतम विषयों को विशेषज्ञों द्वारा घंटों पढाया जाता है लेकिन कोई भी विद्यार्थियों को यह नहीं सिखाता की समाज में सभ्य व अनुशाषित कैसे रहा जाता है।
  • देश का भविष्य निर्माण करने वाले शिक्षकों की दुर्दशा क्यों है? शिक्षा विभाग में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला है ऐसे में देश का भविष्य क्या होगा?
  • देश के हर शहर में परिवहन सम्बंधित विभाग हैं लेकिन अधिकतर वहां चालकों को यातायात के नियम तो दूर वहां पार्किंग का तरीका भी नहीं आता।
  • सृजनात्मक कार्य करने वाले को अनेक विरोधों का सामना करना पड़ता है लेकिन विध्वंसकारी का कोई भी विरोध नहीं करता।
  • कानून चाहे वह महिला सशक्तिकरण के लिए हो या दलित शोषण के विरोध के लिए, उसका दुरपयोग ही अधिक किया जाता है।
  • बढती आबादी देश की सबसे बड़ी समस्या है जिससे अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं, इसके लिए एक भी राजनैतिक पार्टी गंभीर नहीं है।
  • कोई हिंदुत्व की बात करे तो उसे साम्प्रदायिक करार दिया जाता है जबकि 'हिन्दू' व 'इंडिया' दोनों शब्द सिन्धु (नदी) के विदेशी अपभ्रंश हैं। इसके आलावा चुनावों में सभी पार्टियाँ धर्म व जातिगत समीकरण बिठाती हैं।
  • कुछ उद्योग लगत से कम बिक्री मूल्य पर उत्पाद बेचकर भी कैसे लाभ कमाते हैं, जैसे सरिया उद्योग।
  • आज से लगभग ढाई सौ साल पहले से दक्षिण अफ्रीका ले जाये गए भारतीय बंधक आज यहाँ के भारतीयों से अधिक सभ्य, सुसंस्कृत, अनुशाषित और विकासोन्मुख हैं।
  • कुछ पुलिस चौकियों पर पोस्टिंग के लिए बोलियाँ क्यों लगाई जाती हैं।
  • अलग अलग सरकारी विभागों में निर्माण कार्यों की लागत का १० से ४० प्रतिशत तक हिस्सा विभागीय अधिकारियों तथा मंत्रियों को जाता है। बाकि धन में ठेकेदार का मुनाफा व इसके बाद बचे धन से वास्तविक निर्माण होता है। ऐसे कार्यों की गुणवत्ता क्या होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। यह अघोषित परंपरा कई वर्षों से निर्बाध रूप से चली आ रही है।
  • अंग्रेजों द्वारा किये गए इस देश में निर्माण कार्य आज भी बेहतर स्थिति में हैं बजाय की भारतियों द्वारा किये गए अपने देश में निर्माण कार्यों के।
  • ३६.६ करोड़ भारतियों के पास शौचालय भी उपलब्ध नहीं हैं ऐसे में विदेशी पर्यटकों को क्या दिखाने यहाँ बुलाया जाता है?
  • जंगलों में बाघों को बचने के बजाय इंसानियत को बचाया जाता तो बाघ भी बचते और जंगल भी।
  • देश के अन्दर आतंकवादिओं के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जाती और बाहरी देशों से आतंकवादिओं सौंपने की मांग की जाती है।
  • सामाजिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से बने आरक्षण से योग्य व गरीब अनारक्षितों के साथ कौन सा अन्याय किया जाता है? विशेषकर जब इसने अधिकार का रूप ले लिया हो.
  • आरक्षण मिलने के बाद क्या किसी को अन्य वर्ग के लोगों से वास्तविक सम्मान मिल पाया है या सम्मान में कमी आई? क्या वास्तव में सम्मान के लिए पैसा व पद आवश्यक है नाकि व्यक्तिगत गुण व व्यवहार।
  • तथाकथित समाज के ठेकेदार कौन सी संस्कृति की दुहाई देते हैं पाषाण काल की मुगलों और अंग्रेजों के गुलामी काल की या वर्त्तमान की जब देश की गिनती भ्रष्टतम देशों में होती है, आये दिन नए घोटाले होते हैं तथा सर्वाधिक एड्स के मरीज भी यहीं पर हैं।
  • हमारी कानून व्यवस्था इतनी कमजोर क्यों है की न्याय मिलने की आस में जिन्दगी गुजर जाती है फिर भी कई बार बेगुनाह सजा भुगत चूका होता है और गुनाहगार तब तक कई गुनाह और कर चूका होता है।
  • लोकतंत्र का स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया के लोगों की स्याही का रंग अचानक क्यूँ बदल जाता है?
  • उत्तराखंड के निवासियों को प्रदेश की राजधानी या उच्च न्यायालय जाने के लिए लम्बे रस्ते से दूसरे प्रदेश से होकर जाना पड़ता है क्योंकि वन अधिनियम के होते छोटा रास्ता पक्का नहीं बन सकता। क्या इसमें होने वाले इंधन तथा समय का कोई महत्व नहीं?
  • शिक्षा तथा मकान बुनियादी आवश्यकताएँ हैं लेकिन इनका लोन कार लोन से मंहगा है।
  • आज सिम कार्ड सस्ता मिल जाता है लेकिन एक समय को भोजन इससे मंहगा है क्या सिम कार्ड से पेट भरा जा सकता है?
  • देश में अनाज गोदामों में सड़ता रहता है लेकिन भूखे को नहीं दिया जा सकता।
  • भवन बनाते समय लोग भवन सामग्री सड़कों में डालकर दुर्घटना का वातावरण उत्पन्न कर देते हैं जिससे किसी और का घर उजड़ भी सकता है।
ऐसा क्यों होता है? क्या किसी तारतम्य की कमी है या इच्छा शक्ति की? या हम लोग शुक्ष्मदर्शी की भांति छुद्र विषयों में इतना खो चुके हैं की सरल व स्पष्ट दिखने वाले विशाल विषयों को देखने में असमर्थ हैं? और यदि देख ही नहीं पाते तो समझना और सुलझाना तो दूर की बात है।
(प्रकाशित- शैलवाणी स्मारिका-२०११)