भावनाएं जब लेखनी के माध्यम से कागज पर उतर जाती हैं तो कभी-कभी कविताओं का रूप ले लेती हैं-
लोकतंत्र
मैंने देखा है उसे,
अधिकारिओं द्वारा शोषित होते हुए,
हर शिकायत पर प्रताड़ित होते हुए।
फिर भी वह खुद को
काम में व्यस्त रखता रहा।
मैंने देखा है उसे,
पुलिस से बर्बरता पूर्वक पिटते हुए
बदन पर जख्म आँखों से खून बहते हुए।
फिर भी वह हर जुर्म को सहता रहा
नियति समझकर।
मैंने देखा है,
सियासी झंडों को उसकी छाती में गढ़ते हुए,
कभी उसके कफ़न को झंडे की शक्ल लेते हुए।
मगर वह खामोश रहा
क्योंकि उसे बेजान कर दिया गया था।
ये सब देखकर
मै चुप न रह सका, पूछ बैठा
कौन हो तुम और क्यों इतने शशक्त होते हुए भी
मजबूर हो खुद को मिटने के लिए?
बोला, मै लोकतंत्र हूँ लेकिन राजनीति के हातों मै भी मजबूर हूँ।
(प्रकाशित-सत्य चक्र, १३ से १९ जून २०११)
हाले दिल
तुम्हे ये गिला था,
कि हमने कुछ न कहा।
हमें ये गिला था,
की तुमने कुछ न सुना।
हमने जुबां से कहना चाहा,
जो कह न पाए।
नज़रों से कहना चाहा,
तो तुम समझ न पाए।
हम तो पा चुके,
हाले दिल न कह पाने की सजा।
अब तुम ही कुछ कहो,
जुबां से या नजर से।
हम समझ लेंगे सनम,
हाले दिल बयां करो तो सही।
(प्रकाशित-वनिता, जनवरी २००९)
इंतजार
मैंने जब भी बनानी चाही तस्वीर,
बिखर गए रंग
और रह गया खाली मेरा कैनवास।
चाहा की छेडू कोई धुन,
तो टूट गए तार
और हो गए मेरे-
सारे साज़ बेआवाज़।
फिर मैंने सोचा, लिखूं एक कविता
पर शब्दों ने छोड़ दिया मेरा साथ,
और रह गया,
कोरा कागज़ मेरे पास।
देखना चाहा जब सपना,
तो पथराई आँखें
दे गई आँखों में
चाँद और टूटे ख्वाब।
फिर भी है मुझे इंतजार,
वो सुबह भी आयेगी
जो मिलाएगी रात को दिन के साथ,
पूरे होंगे अरमां, है पूरा विश्वास।
(प्रकाशित-कादम्बिनी, अगस्त २००६)
आसमां
हर किसी की दुनिया में
सिर्फ ये जमीं और ये आसमां नहीं होते।
इस आसमां से ऊपर भी
कई आसमां होते हैं।
ख़ामोशी
हर ख़ामोशी
बेआवाज नहीं होती।
ख़ामोशी की आवाज सुन सके
हर किसी पे वो अहसास नहीं होते।
खुदा
खुदा भी होते हैं सबके जुदा
मेरा तो खुदा तू है।
मुझे इससे क्या
गर तेरा खुदा कोई और है।
(प्रकाशित-कादम्बिनी, मई २००५)
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