भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि संस्थानों, समाज और यहां तक कि घरों में भी इस वाइरस का प्रकोप दिखाई देता है। जाति, धर्म, पद, पहुंच या उग्रता के आधार पर, व्यक्ति विशेष बिना मेहनत किए वो सब पा लेता है, जो शांतिपूर्वक मेहनत और लगन से अपना कार्य करने वाला नहीं पा सकता।
कुछ बिना रीढ़ वाले लोग, यत्र-तत्र तार्किकता को दरकिनार करते हुए, अनेक विशेषाधिकार स्वतः ही तुष्टिकरण के वशीभूत होकर कुपात्र की झोली में डाल देते हैं। इसके अनेक उदाहरण विभिन्न नामों से अनेक क्षेत्रों में उपलब्ध हैं।
कुछ बिना रीढ़ वाले लोग, यत्र-तत्र तार्किकता को दरकिनार करते हुए, अनेक विशेषाधिकार स्वतः ही तुष्टिकरण के वशीभूत होकर कुपात्र की झोली में डाल देते हैं। इसके अनेक उदाहरण विभिन्न नामों से अनेक क्षेत्रों में उपलब्ध हैं।
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