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मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है - हेम चन्द्र कुकरेती

Saturday, May 2, 2020

संवेदनशीलता

किसी की भी असमय मृत्यु दुखद होती है, चाहे वो सम्पन्न फिल्मी हस्तियां हों या झोलाधारी साधू।

किसी को बचाने के लिए लोग जीजान लगा देते हैं और किसी को लोग जान से मार देते हैं।

जानबूझकर किसी निर्दोष की हत्या करना शायद ज्यादा कष्टदायक है।

जान सबकी बराबर है, फिर भी मीडिया और सोशल मीडिया साधुओं के लिए कम संवेदनशील दिखाई देता है।

Monday, April 13, 2020

शिक्षाप्रद धारावाहिक

रामायण, महाभारत और चाणक्य धारावाहिक कई विषयों की शिक्षा देते हैं, विशेषकर प्रबंधन, कूटनीति और राजनीति जैसे विषयों की।

वर्तमान समय में लॉक डाउन को देखते हुए इन पुराने धारावाहिकों का दूरदर्शन से पुनः प्रसारण किया जाना भी एक दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय है।

बिना किसी धारावाहिक पर निर्माण खर्च के, दूरदर्शन की लोकप्रियता और आय को बढ़ाना, तथा नागरिकों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना, ये भी जैसे एक पंथ दो काज की कूटनीति का हिस्सा है।

Monday, April 6, 2020

कठिन परिस्थितियां सिखाती हैं

कोविड-19 ने ये स्वस्थ रहने के लिए हमें शिक्षा दी है कि-
1. बचाव ही सर्वोत्तम सरल उपाय है, चिकित्सा ही हमेशा समाधान नहीं है।
2. साफ-सफाई महत्वपूर्ण है। शरीर, मन, विचार और घर बाहर की भी।
3. अनुशासन जीवन का आवश्यक अंग है। इसके बिना किसी लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
4. बहुत से क्षेत्र जैसे चिकित्सा, पुलिस, खाद्य सामग्री, प्रशासन आदि का महत्व अब समझ पाए हैं।

Saturday, March 21, 2020

कॅरोना से युद्ध

देश के सभी चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों को, अपनी जान जोखिम में डालकर, देशवासियों की खातिर कॅरोना महामारी से लड़ने के लिए नमन। जय हिंद।

Tuesday, March 17, 2020

कॅरोना से बचाव

कॅरोना बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा Pandemic घोषित किया गया है, जोकि Epidemic से ज्यादा गंभीर है। जानकारों के अनुसार भारत में भी आने वाला एक महीना इस बीमारी के बढ़ते स्तर की दृष्टि से गंभीर (critical) है। शासन व प्रशासन द्वारा अपने स्तर पर इसके लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

स्वस्थ रहने व किसी भी बीमारी से बचने के लिए 2 बाते आवश्यक हैं-

1. स्वास्थ्य की दृष्टि से अपने खान-पान, रहन-सहन, दृष्टिकोण और आदतों में उचित सुधार कर हम अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढा सकते हैं।

2. स्वयं तथा अपने आसपास जीवाणुओं व विषाणुओं को फैलने से रोकने हेतु आवश्यक कदम उठा सकते हैं ताकि आसपास सुरक्षित  व स्वस्थ (hygienic) वातावरण बना रहे।

अपने आसपास, पड़ोस, समाज व कार्य स्थल में हम जो कर सकते हैं उनमें से कुछ हैं-
-करेंसी नोटों को थूक लगाकर न गिनें, और इधर उधर न थूकें।
-हाथों को नियमित धोते रहें। सफाई का ध्यान रखें।
-कार्यस्थल या सार्वजनिक स्थानों के दरवाजों के हैंडल या सीढ़ियों की रेलिंग, टेलीफोन, ए.टी.एम., लिफ्ट के बटन इत्यादि जहां सभी हाथ लगाते हैं, इनको अनावश्यक न छुएं, तथा संभव हो तो इनकी नियमित सफाई हेतु कदम उठाएं।
-जहां तक संभव हो नकदीरहित cashless) भुगतान करें।
-जिनको खुला रख सकते हैं, उन दरवाजों को खुला रखें ताकि दरवाजों के हैंडल छूना न पड़े।
-अपने पास हमेशा टिशू पेपर व सैनिटाइजर रखें।
-सफाई व भोजनालय कर्मचारियों को भी मास्क व दस्ताने उपलब्ध हों तो बेहतर होगा।
-शौचालयों में साबुन, सैनिटाइजर, टिशू पेपर की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
- खांसते-छींकते समय कीटाणुओं को रोकने के लिए आस्तीन का उपयोग करें, ये ही सबसे आसान तरीका है।
-नाक, मुंह, आंख को गंदे हाथों से न छुएं।
-आपस में सुरक्षित दूरी बनाए रखें
-बाहरी सामान को छूते समय ध्यान रखें कि वह कीटाणुग्रस्त हो सकता है।
-स्वयं व अपने परिजनों को अनावश्यक बाहर जाने से रोकें।
-दोषारोपण के बजाय अपने आसपास के अनभिज्ञ लोगों को इससे बचने के उपाय बताएं व उनको जागरूक कर अच्छे नागरिक का परिचय दें।
-इस महामारी से बचने में शासन-प्रशासन को सहयोग दें।

Saturday, March 14, 2020

करोना


ये कैसी बीमारी है, नाम तो है करोना, 
और करने कुछ नहीं दे रही।

Monday, March 9, 2020

करोना वाइरस

तम्बाकू-गुटका खाकर यहां-वहां थूकने वाला, हेलमेट को बोझ समझने वाला, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाला वो भारतीय नागरिक जिसे स्वास्थ्य, सुरक्षा और अनुशासन का महत्व ही नहीं पता, उसे क्या करोना वाइरस कुछ सही रास्ते में ला पाएगा?

खुले में शौच, थूक लगाकर नोट गिनना, मुंह खोलकर सार्वजनिक स्थानों पर खाँसना, मिलावट और रसायनों से दूषित खाद्य सामग्री का सेवन करना आदि, अनेक आदतों में यदि एक आम आदमी सुधार कर ले, तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो जाय तो स्वास्थ्य तो होगा ही, देश में चिकित्सालयों का बोझ भी स्वतः ही कम हो सकता है।

Friday, February 14, 2020

विशुद्ध भारतीय वाइरस 'तुष्टिकरण'

भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि संस्थानों, समाज और यहां तक कि घरों में भी इस वाइरस का प्रकोप दिखाई देता है। जाति, धर्म, पद, पहुंच या उग्रता के आधार पर, व्यक्ति विशेष बिना मेहनत किए वो सब पा लेता है, जो शांतिपूर्वक मेहनत और लगन से अपना कार्य करने वाला नहीं पा सकता।

कुछ बिना रीढ़ वाले लोग, यत्र-तत्र तार्किकता को दरकिनार करते हुए, अनेक विशेषाधिकार स्वतः ही तुष्टिकरण के वशीभूत होकर कुपात्र की झोली में डाल देते हैं। इसके अनेक उदाहरण विभिन्न नामों से अनेक क्षेत्रों में उपलब्ध हैं।

Tuesday, January 21, 2020

मुफ्त की अपेक्षा क्यों?

जीवन में मुफ्त कुछ नहीं मिलता, एक सांस लेने के लिए एक सांस देनी पड़ती है। कोई भी वस्तु जिसपर कुछ लागत लगती है, यदि मुफ्त मिल रही है तो उसकी कीमत कभी न कभी, किसी न किसी को, किसी न किसी भी रूप में चुकानी पड़ती है। इसलिए किसी भी सभ्य नागरिक को मुफ्त की अपेक्षाओं को छोड़कर केवल अपनी मेहनत के फल को आत्मसम्मान और अनंद सहित उपभोग करना चाहिए।

एक बार एक राज्य में अकाल पड़ा, लोगों के पास खाने को अन्न नहीं था। वहां का राजा अपनी प्रजा से सहानुभूति रखता था, उसके पास अन्न का काफी भंडार था जिसे वह प्रजा को देना चाहता था। राजा ने घोषणा की कि वो एक भवन बनाना चाहते हैं, जोभी उसमें श्रमदान देगा उसे परिश्रमिक के रूप में समुचित अन्न दिया जाएगा। कुछ लोग जो इसके लिए तैयार हुए उनको दिन के समय निर्माण में लगा दिया गया। कुछ लोग जो संख्या में कम थे लेकिन अपने पद-प्रतिष्ठा, शिक्षा या इस कार्य के ज्ञान न होने के कारण निर्माण कार्य करने में झिझक महसूस कर रहे थे, उनको रात के समय उसी भवन को तोड़ने में लगा दिया गया। इस प्रकार अकाल का समय भी हंसी-खुशी बीत गया।

किसी दरबारी ने पूछा कि वे अन्न को बिना श्रम के भी प्रजा को बांट सकते थे, फिर उन्होंने बेवजह जनता को क्यों परेशान किया। राजा ने बताया कि वे अपनी प्रजा को मुफ्त में कुछ नहीं देना चाहते, इससे उनका आत्मसम्मान भी गिरेगा, और साथ ही यदि जनता को एक बार मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई तो बाद में राज्य में कोई भी कार्य नहीं करेगा, जोकि लोगों को अकर्मण्य और विध्वनकारी बना सकता है, साथ ही किसी भी राज्य के विकास के लिए बहुत नुकसानदायक है।

पुराने समय के कई अशिक्षित लोग आज के समय के कई पढ़े-लिखे लोगों से अधिक व्यवहारिक, समझदार थे।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य भी आने वाले चुनाव को देखते हुए कई नेता अनेक सुविधाओं को मुफ्त बांटने की घोषणा करते हैं। अच्छा होता कि अपने अतिरिक्त बजट को मुफ्त बांटने के बजाय वे शिक्षा, निर्माण या नागरिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में खर्च करते और नागरिकों को बेहतर जीवन जीने के अवसर देते।