स्वागतम
मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है - हेम चन्द्र कुकरेती
Monday, June 19, 2017
Sunday, April 30, 2017
Saturday, April 15, 2017
आज का चिंतन
प्रतिक्रियाएं- हम जो देखते, सुनते, सोचते या बोलते हैं वो कई बार वास्तविकता से दूर होता है। हमारा समाज प्रतिक्रियात्मक (reactive) अधिक है और क्रियात्मक (active) या विश्लेषक (analytical) बहुत कम है। जिस कारण कई लोग, यहां तक कि पत्रकारिता से जुड़े पढ़े लिखे विद्वान लोग भी, कई बार बड़ी हास्यास्पद और तर्कहीन बातें करते हैं। कभी कारणों को समझे बिना प्रभावों के बारे में बहस करते हैं। कई अकर्मण्य और कृतघ्न लोग तो हमारे जवानों के त्याग और समर्पण का भी सम्मान करना नही जानते। जैसा आजकल उनके द्वारा हमारे जवानों की कार्रवाई पर दी गई प्रतिक्रियाओं से भी व्यक्त है। देश और उसकी सुरक्षा, अखंडता और एकता, सभी जाति, धर्म और राजनीति से ऊपर है, क्योंकि जब देश है तभी हम सबका अस्तित्व है।
Sunday, August 14, 2016
Sunday, July 17, 2016
शिष्टाचार और सभ्यता
किसी व्यक्ति के शिष्टाचार और सभ्यता उसके व्यवहार में प्रदर्शित होती है। पाया गया है कि भारतीयों में शिष्टाचार और सभ्यता कम पाई जाती है। जहां यह अनेक विकसित देशों में इसे प्रत्येक नागरिक को आरंभिक शिक्षा में ही सिखाया जाता है, भारत में इसे शिक्षा का भाग नहीं माना जाता। इसका परिणाम भटके हुए युवाओं, तथा बढ़ते अपराध के रूप में आए दिन दिखाई देता है।
कुछ सामान्य शिष्टाचार -
1- फोन करने पर उत्तर देने वाले का नाम पूछने से पहले अपना परिचय देना चाहिए।
2- यदि किसी परिचित की कॉल छूट जाए तो यथाशीघ्र उसे कॉल करें।
3- फोन करने से पहले नंबर ठीक से जांच लें, ऐसा न करने पर आप किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त व्यक्ति को परेशानी में डाल सकते हैं।
4- वाहन चलाते समय या किसी समूह के बीच बैठकर फोन न करें।
5- किसी भी स्थान से जाने से पहले आवश्यकतानुसार पंखे और लाइट के स्विच बंद कर लें।
6- वाहन चलाते या पार्किंग करते समय दूसरों की सुविधा का ध्यान भी रखें।
7- लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करें।
8- सार्वजानिक स्थानों पर जोर से न बोलें।
9- घरों में ऐसा ध्वनि या वायु प्रदूषण न करें जिससे पडोसी को परेशानी हो।
10- किसी से कोई वस्तु लेने या उठाने पर, इस्तेमाल के बाद यथाशीघ्र वैसे ही दें या रखें जैसे ली गई थी।
11- जिस देश, प्रदेश या स्थान में रहते हैं उसकी भाषा, संस्कृति व निवासियों का सम्मान करें, और उनको अपनाने का प्रयास करें।
12- विद्या से विनम्रता आती है अतः विनम्रता, अभिवादन, सेवा व सत्कार करना सीखें, इनके बिना शिक्षा अधूरी है।
13- सोशल मीडिया में कुछ भी लिखने से पहले भाषा और भावनाओं का ध्यान रखें। इससे न केवल आपकी छवि प्रभावित होती है, बल्कि एक अप्रिय बात से आप अपने अच्छे मित्रों को खो सकते हैं।
14- सोशल मीडिया में जाति, धर्म, लिंगभेद और राजनैतिक टिप्पणी से बचें, ये सभी अनावश्यक बहस और दुर्भावना को ही जन्म देते हैं।
Saturday, April 30, 2016
कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
Please click to see the e-book, paperback.
ई पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
English version
E-Book- To BE or not to BE
Book- To BE or not to BE
ई पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
पुस्तक- कर्मचारी सबसे बड़ी पूंजी
English version
E-Book- To BE or not to BE
Book- To BE or not to BE
श्रमिक दिवस पर
क्या आप जानते हैं कि:
1. आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जहां आज भी कर्मचारियों/श्रमिकों तथा अधिकरियों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार, भोजनालय, निवास और यहाँ तक कि घरों के आकार और सुविधाएं भी पद के अनुसार होती हैं।
2. श्रमिक अपने कैरियर में आगे न बढ़ पाएं इसलिए ऐसी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नीतियां बनाई गई हैं कि चाहे वे कितना ही कठिन परिश्रम करें, शैक्षिक योग्यता बढ़ा लें या उत्कृष्ट प्रदर्शन कर लें, कभी उनके आरंभिक पद तक भी नहीं पहुँच सकते।
3. संस्थान द्वारा अधिकारियों के वेतन का 7% उनके पेंशन खाते में जमा किया जाता है जबकि, श्रमिक को 5% के लिए भी लड़ना पड़ता है। जबकि दोनों के वेतन में पहले ही बड़ा अंतर कर दिया जाता है और देखा जाय तो सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता श्रमिक को ही अधिक होती है।
4. अधिकारियों के पाल्यों को उच्च शिक्षा के होस्टल खर्च हेतु 2000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं, जबकि श्रमिक के पाल्य को 750 रूपए भी लड़ने के बाद मिलते हैं। अर्थात शिक्षा के अधिकार होने के बाद भी दोनों के बच्चों की शिक्षा में भेदभाव।
5. अधिकारियों का पदोन्नति काल भी 2 से 4 वर्ष है जिसके लिए कोई परीक्षा या साक्षात्कार नहीं होता, जबकि कर्मचारी का पदोन्नति काल 5 वर्ष से कम नहीं है, जिसे वास्तव में पदोन्नति कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे उसके पद, स्तर या कार्य में कोई अंतर नहीं आता। इसके लिए भी उसे परीक्षा तथा साक्षात्कार देना होता है।
6. श्रमिकों को जापानी पद्वतियां जैसे कैजन, 6सिग्मा, क्वालिटी सर्किल आदि अपनाने के लिए जोर डाला जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जापानी प्रबंधन पद्वति अपनाने के बजाय अंग्रेजों की तरह दमनकारी नीतियां अपनाते हैं।
7. बिक्री कम होने पर श्रमिक को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि तो शून्य कर दी जाती है लेकिन अधिकारी को प्रोत्साहन राशि तब भी मिलती है।
इसके अलावा और भी कई प्रकार से श्रमिकों का शोषण किया जाता है वो भी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि निजी संस्थानों में श्रमिकों का कितना शोषण होता होगा।
1. आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जहां आज भी कर्मचारियों/श्रमिकों तथा अधिकरियों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार, भोजनालय, निवास और यहाँ तक कि घरों के आकार और सुविधाएं भी पद के अनुसार होती हैं।
2. श्रमिक अपने कैरियर में आगे न बढ़ पाएं इसलिए ऐसी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष नीतियां बनाई गई हैं कि चाहे वे कितना ही कठिन परिश्रम करें, शैक्षिक योग्यता बढ़ा लें या उत्कृष्ट प्रदर्शन कर लें, कभी उनके आरंभिक पद तक भी नहीं पहुँच सकते।
3. संस्थान द्वारा अधिकारियों के वेतन का 7% उनके पेंशन खाते में जमा किया जाता है जबकि, श्रमिक को 5% के लिए भी लड़ना पड़ता है। जबकि दोनों के वेतन में पहले ही बड़ा अंतर कर दिया जाता है और देखा जाय तो सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता श्रमिक को ही अधिक होती है।
4. अधिकारियों के पाल्यों को उच्च शिक्षा के होस्टल खर्च हेतु 2000 रूपए प्रतिमाह दिए जाते हैं, जबकि श्रमिक के पाल्य को 750 रूपए भी लड़ने के बाद मिलते हैं। अर्थात शिक्षा के अधिकार होने के बाद भी दोनों के बच्चों की शिक्षा में भेदभाव।
5. अधिकारियों का पदोन्नति काल भी 2 से 4 वर्ष है जिसके लिए कोई परीक्षा या साक्षात्कार नहीं होता, जबकि कर्मचारी का पदोन्नति काल 5 वर्ष से कम नहीं है, जिसे वास्तव में पदोन्नति कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे उसके पद, स्तर या कार्य में कोई अंतर नहीं आता। इसके लिए भी उसे परीक्षा तथा साक्षात्कार देना होता है।
6. श्रमिकों को जापानी पद्वतियां जैसे कैजन, 6सिग्मा, क्वालिटी सर्किल आदि अपनाने के लिए जोर डाला जाता है, जबकि अधिकारी स्वयं जापानी प्रबंधन पद्वति अपनाने के बजाय अंग्रेजों की तरह दमनकारी नीतियां अपनाते हैं।
7. बिक्री कम होने पर श्रमिक को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि तो शून्य कर दी जाती है लेकिन अधिकारी को प्रोत्साहन राशि तब भी मिलती है।
इसके अलावा और भी कई प्रकार से श्रमिकों का शोषण किया जाता है वो भी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि निजी संस्थानों में श्रमिकों का कितना शोषण होता होगा।
Subscribe to:
Posts (Atom)